कंधों पर ढोते ढोते भार,राष्ट्र निर्माण कर जाते हैं” : कमलेश सूद, प्रख्यात लेखिका

मज़दूर दिवस पर विशेष

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नमन मंच
विधा कविता

विषयकंधों पर ढोते ढोते भार,राष्ट्र निर्माण कर जाते हैं”

कंधों पर ढोते ढोते भार, राष्ट्र निर्माण कर जाते हैं।
हाथों में हैं छाले पर मेहनत से ज़रा नहीं घबराते हैं।
पारिश्रमिक मिले अधिक या थोड़ा दिनभर
खड़ी करें अट्टालिकाएं, स्वयं नींव पत्थर बन जाते हैं।

भोर-सवेरे मेहनतकश यह सड़कों पर आ जाते हैं।
हर काम कर लेते हैं, मेहनत से ज़रा नहीं घबराते हैं।
सिर पर बोझा ढोते भारी, कंधों पर है जिम्मेदारी।
दिनभर खटकर,सांझ ढले ही घर को वापस आते हैं।

हर इक देश की नींव इन्हीं हाथों से रखी जाती है।
काम करें पर भीख न मांगें,शान से रोटी खाते हैं।
घर में चूल्हा जला कभी और कभी-कभी न भी जलता।
खून-पसीना ख़ूब बहाते,जल पीकर ही सो जाते हैं।

झोंपड़-पट्टी में रहने वाले, अपने बच्चों के प्यारे हैं।
नींव खोदते,महल बनाते, सड़कों पर बंजारे हैं।
सूखी रोटी में खुश रहते,मुर्ग मुसल्लम नहीं चाहते।
मेहनतकश मजदूर हैं यह दुख अपना नहीं कहते हैं।

ऊंची ऊंची बना इमारतें, अट्टालिकाएं खड़ा करते हैं।
नींव में इनकी पत्थर-रेता, खून-पसीना भरा करते हैं।
दिनभर करते ये मेहनत सारे, ज़रा नहीं डरा करते हैं।
कंधों पर ढोते ढोते यह भार, राष्ट्र निर्माण करा करते हैं।

स्वरचित कविता
कमलेश सूद
पालमपुर१७६०६१
हिमाचल प्रदेश।

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